Jul 3, 2008

हड़तालों व सड़क जाम पर सुप्रीम कोर्ट ने अपनी नाराजगी जाहिर की

नई दिल्ली-बार-बार की हड़तालों और सड़क जाम पर निराशा प्रकट करते हुए नाराज सुप्रीमकोर्ट ने बृहस्पतिवार को देश को बंधक बनाने वालों के खिलाफ कार्रवाई करने में असहयोग दिखाने के लिए सरकार को फटकार लगाई।
सर्वोच्च न्यायालय ने इस मौके का उपयोग यह व्यंग्य करने के लिए भी किया कि किसी तरह अदालतों पर हस्तक्षेप और न्यायिक नाकामी का आरोप लगाया जाता है जब उन्हें जन महत्व के मामलों पर आदेश पारित करने के लिए बाध्य किया जाता है जो राज्य स्वयं कर सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्य पूरा आराम करते हैं और कुछ नहीं करते। जिन्हें संविधान के तहत काम करना चाहिए वे इसके पक्ष हैं। जिनके पास शारीरिक शक्ति है वे देश को बंधक बना सकते हैं। न्यायमूर्ति अल्तमस कबीर की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि पूरा जीवन रुक जाता है। दवाओं ईधन और सभी चीजों की आवाजाही प्रभावित होती है तथा राज्य अपनी असहयोग व्यक्त करता है। इसे अनुमति नहीं दी जा सकती।
राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या ३१-ए पर हाल के अवरोध से जुड़ी याचिकाओं की सुनवाई कर रही पीठ को आश्चर्य हुआ कि इस तरह के संकट में अधिकारी अपनी जिम्मेदारी से बच रहे हैं और स्थिति से निबटने का काम न्यायपालिका पर छोड़ रहे हैं। बाकी दुनिया को सिक्किम से जोड़ने वाले एकमात्र राजमार्ग को अलग गोरखालैंड की मांग कर रहे प्रदर्शनकारियों ने बंद कर दिया था।
पीठ ने केंद्र, पश्चिम बंगाल और सिक्किम की सरकारों को एनएच 31-ए पर यातायात का सुचारु आवागमन सुनिश्चित करने का निर्देश देते हुए कहा कि राज्यों की अपनी अदालतों के प्रति जिम्मेदारी है। अदालत को वह आदेश पारित करना होता है जो राज्य को खुद करना चाहिए। उसके बाद कहा जाता है कि हस्तक्षेप है और न्यायपालिका नाकाम है।
न्यायालय ने न सिर्फ एनएच ३१-ए बाधित किए जाने के दौरान पश्चिम बंगाल में कानून व्यवस्था की स्थिति से निबटने के तौर तरीकों पर नाखुशी जाहिर की बल्कि हाल के कई आंदोलनों का जिक्र किया जिनमें राजस्थान में अनुसूचित जनजाति के दर्जे की मांग पर गुर्जर विरोध शामिल था जिसने जनजीवन ठप कर दिया था।
पीठ ने कहा कि कोई भी इस देश को बंधक बना सकता है। महत्वपूर्ण संपर्क रोक दिए जाते हैं और कोई व्यक्ति कुछ नहीं कर रहा है। राजस्थान ने इन सबका ४५ दिन सामना किया। इस पीठ में न्यायमूर्ति जीएस सिंघवी भी शामिल थे।
पीठ सिक्किम सरकार के इन सुझावों से भी खफा थी कि सेना और अ‌र्द्धसैनिक बलों की मदद एचएच ३१-ए से अवरोध हटाने के लिए ली जाना चाहिए। पीठ ने सुझाव को खारिज करते हुए कहा कि सबकुछ सेना द्वारा, तब हम वहां क्यों नहीं सैन्य शासन लगा देते।
जिस याचिका पर अदालत ने टिप्पणियां कीं वह २००५ में सिक्किम निवासी ओपी भंडारी ने दाखिल की थी। इसके साथ ही उन्होंने ताजे आवेदन दाखिल किए थे। राज्य सरकार ने भी गोरखालैंड पर हालिया अशांति के मद्देनजर याचिका पेश की थी और केंद्र को एनएच ३१-ए से आवश्यक सामग्रियों की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए निर्देश देने की मांग की थी।
पीठ ने गोरखा जनमुक्ति मोर्चा, जन जागरण मंच (दोनों गोरखालैंड समर्थक समूह) आमरा बंगाल और जन चेतना (दोनों गोरखालैंड विरोधी) को भी निर्देश दिया कि वे सुनिश्चित करें कि एनएच ३१ पर आवागमन में कोई बाधा पैदा न हो।

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