Jul 6, 2008

करार के प्रति सनक की पोल खोली जाएगी

`राजनीतिक गठजोड़' के टूटने की कगार पर पहुँचने के बीच वाम दलों ने अब सत्तारूढ़ संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन पर निशाना साधने के लिए अब कमर पूरी तरह कस ली है और सरकार के खिलाफ `आरोप-पत्र' तैयार कर रहे हैं, जिसमें उसके `पूरे नहीं किये गये वादे' और परमाणु करार के प्रति `सनक' का ब्यौरा शामिल किया जाएगा।
वाम दल के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि माकपा, भाकपा, आरएसपी और फारवर्ड ब्लॉक मिलकर एक `आरोप-पत्र' सामने लाएँगे, जिसमें संप्रग की कई खामियों और नाकामियों का उल्लेख होगा। इसमें `मूल्य वृद्धि और मुद्रास्फीति राष्ट्र हितों से समझौता और साझा न्यूनतम कार्यक्रम में शामिल अधूरे वादों' का भी ब्योरा होगा।
नेता ने अपनी पहचान छिपाने की शर्त पर कहा कि समाजवादी पार्टी के `विश्वासघात' से दुःखी वाम दल अब अपने अभियान में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बीच हुए `सुविधा की राजनीति के करार' का पर्दाफाश करेंगे।
संप्रग के खिलाफ वाम दलों का अभियान १४ जुलाई को राजधानी में शुरू होगा, जिसमें शीर्ष नेता परमाणु करार पर अपने विरोध के अलावा बढ़ती मुद्रास्फीति और कमर तोड़ महँगाई से निपटने के लिए उचित कदम उठाने से `इनकार' करने वाली सरकार पर `हमला' बोलेंगे।
अभियान के लिये शीर्ष नेताओं को मैदान में उतारने की योजनाएँ बनाई जा रही हैं, जो सभी राज्यों के प्रमुख शहरों में आम सभाओं और रैलियों में भाग लेकर वाम दलों की स्थिति स्पष्ट करेंगे।
माकपा के राष्ट्रीय सचिव डी। राजा ने पत्रकारों से कहा, `हमारा विरोध केवल एक अकेले परमाणु करार के मुद्दे पर ही केंद्रित नहीं है। हम मुद्रास्फीति महँगाई और अर्थव्यवस्था के कुप्रबंधन जैसे मुद्दे भी उठाएँगे।'
राजा ने कहा कि वाम दलें के अभियान का मकसद करार के विरोध सहित अन्य मुद्दांs पर हमारे रूख के बारे में लोगों के मन में मौजूद `गलतफहमियों' को दूर करना है। उन्होंने कहा कि अभियान में मुख्य तौर पर युवाओं पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा। उनका कहना था कि `देश के कर्णधारों' को करार के `दुष्परिणामों' और अन्य मुद्दों के बारे में शिक्षित करने की ज़रूरत है, जिनका आज देश सामना कर रहा है। फारवर्ड ब्लॉक के सचिव जी। देवराजन ने कहा, `हमारा विशेष ध्यान महाविद्यालय परिसरों पर केंद्रित रहेगा।'
नेता जनता को यह बताएँगे कि सरकार का इस बात पर ज़ोर देना `सही तस्वीर' नहीं है कि परमाणु ऊर्जा देश की ऊर्जा ज़रूरतों के लिए `रामबाण' है।
देवराजन ने कहा, `हम परमाणु ऊर्जा के विरोध में नहीं हैं, लेकिन सरकार का यह तर्क गलत है कि ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने का यही एकमात्र तरीका है। हम यही लोगों को बताएँगे।'
वाम दल के एक नेता ने कहा कि दलों का केंद्रीय नेतृत्व अभियान की सामग्री को तैयार करेगा और इसे पार्टी की इकाइयों में वितरित किया जाएगा। यह पूछने पर कि क्या वाम दलों के समान ही विचार रखने वाले अन्य दल भी इस विरोध प्रदर्शन में शामिल होंगे तो नेता ने कहा कि इस बारे में फैसला किया जाना अभी बाकी है।

भारतीय दूतावास के पास धमाका, 7 मरे

काबुल, ७ जुलाई- अफगानिस्तान स्थित भारतीय दूतावास के पास सोमवार को हुए एक आत्मघाती हमले में सात लोगों की मौत हो गई है।
रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता जनरल मोहम्मद जाहिर आजमी ने ये जानकारी देते हुए बताया कि एक आत्मघाती कार धमाके में करीब पांच लोग मारे गए है।
वहीं काबुल अस्पताल के प्रमुख सैयद कादिर ने बताया कि धमाके के बाद यहां लाए गए आठ घायलों का इलाज किया जा रहा है, जिनमें से दो की मौत हो गई है।

आडवानी नें सरकार को एक नाटक मंडली बताया

भारतीय जनता पार्टी के नेता लालकृष्ण आडवाणी ने आज प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से तत्काल संसद में विश्वासमत हासिल करने की माँग की। आडवाणी ने यहां संवाददाताओं से कहा कि सरकार एक नाटक मंडली बनकर रह गई है और इसने नैतिक वैधता खो दी है। जीवनदान के लिए यह सरकार कोई भी सौदेबाजी करने को तैयार प्रतीत होती है। भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार आडवाणी ने कहा कि सभी व्यावहारिक कार्यों के लिए मनमोहन सिंह सरकार लोकसभा में बहुमत खो चुकी है और सरकार को तत्काल संसद का सत्र बुलाकर लोकसभा में विश्वासमत हासिल करना चाहिए। उन्होंने कहा कि कांग्रेस और समाजवादी पार्टी की विश्वसनीयता संदिग्ध है, आडवाणी ने कहा कि कांग्रेस और समाजवादी पार्टी दोनों की विश्वसनीयता संदिग्ध है। जब यह स्पष्ट हो गया कि सरकार अगर परमाणु करार पर आगे बढती है तो वाम दलों द्वारा सरकार से समर्थन वापस लिया जाना तय है तो उसने सपा को पटाना शुरू किया, जिसके लोकसभा में ३९ सदस्य हैं।
भाजपा नेता ने परमाणु करार पर सरकार और वामदलों के बीच तनातनी का जिक्र करते हुए कहा कि संप्रग के दो प्रमुख सहयोगियों के बीच मतभेदों ने पिछले १८ महीने से सरकार को पंगु कर रखा है और अब सरकार एक नाटक मंडली बनकर रह गई है और इसने नैतिक वैधता खो दी है।
१९९० के दशक में एच। डी. देवेगौड़ा के स्थान पर इन्द्र कुमार गुजराल को प्रधानमंत्री बनाये जाने की घटना का उल्लेख करते हुए आडवाणी ने कहा कि उस वक्त कांग्रेस ने मात्र सिर का ऑपरेशन किया था। इस बार लगता है कांग्रेस सिर की बजाय टांगों की सर्जरी कर रही है।
उन्होंने कहा `अब तक यह ढाँचा (सरकार) वामदलों के सहारे खड़ा था अब सपा के सहारे खड़ा रहने की कोशिश की जा रही है। आडवाणी ने कहा कि प्रारंभ से अब तक जितनी भी सरकारें रहीं हैं उसमें से आज जैसी सरकार पहले कभी नहीं रही। परमाणु मुद्दे पर पिछले 18 महीने में तो मानों इस सरकार को लकवा मार गया। पिछले एक सप्ताह से यह सरकार मात्र अपने को बचाने में लगी है।
एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी परमाणु करार के वर्तमान स्वरूप के खिलाफ है उसका मानना है कि कोई भी समझौता हो वह बराबरी का होना चाहिए। उन्होंने कहा कि भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार बनेगी तो वह दोबारा बातचीत कर ऐसा समझौता कराने की कोशिश करेगी, जो बराबरी का हो। यह पूछे जाने पर कि सपा के कांग्रेस के साथ चले जाने पर क्या भाजपा बहुजन समाज पार्टी के साथ अपने तार जोड़ेगी आडवाणी ने कहा कि भाजपा ने उत्तर- प्रदेश में सभी 80 लोकसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े करने की योजना बनाई है। मायावती के नेतृत्व वाली बसपा का उत्तर-प्रदेश में ही सबसे बड़ा जनाधार है।
उन्होंने कहा कि संप्रग में शामिल और इसे बाहर से समर्थन दे रहे सभी दलों ने अपनी विश्वसनीयता खो दी है और अब जनता यह तय करेगी कि भाजपा ने विश्वसनीयता खोई है या नहीं।

मंदिर बोर्ड को भूमि वापस दो: मुस्लिम जमात

बडवानी, ६ जुलाई-मध्यप्रदेश के बडवानी जिले के एक मुस्लिम संगठन ने श्री अमरनाथ मंदिर बोर्ड को पुन. जमीन आवंटित करने की मांग की है।
बडवानी जिले के सेंधवा स्थित “मुस्लिम जमात” के सदर असलम खान के नेतृत्व में अल्पसंख्यकों ने इस आशय का राष्ट्रपति को संबोधित एक ज्ञापन स्थानीय प्रशासन को दिया।
ज्ञापन में जम्मू कश्मीर सरकार द्वारा श्री अमरनाथ मंदिर बोर्ड को आवंटित भूमि वापस लेने का विरोध करते हुये कहा गया है कि उसके इस फैसले से देश भर में धरना प्रदर्शन होने से वैमनस्यता माहौल निर्मित हो रहा है। इसमें बताया गया है कि मुस्लिम समाज किसी भी प्रकार के भेदभाव अथवा सांप्रदायिकता के खिलाफ है।
रतलाम से मिली एक खबर के मुताबिक “मुस्लिम राष्ट्रीय मंच” के मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ के प्रभारी मुस्तफा खान ने भी पत्रकारों से चर्चा में श्री अमरनाथ मंदिर बोर्ड को तत्काल भूमि सौपे जाने की मांग की है।

पाकिस्तान जोर पकड़ रही है कारगिल जांच की मांग

इस्लामाबाद। कारगिल संघर्ष के लिए राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ और पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ दोनों को जिम्मेदार ठहराने संबंधी पीपीपी नेता आसिफ अली जरदारी के बयान से पाक में नया विवाद खड़ा हो गया है। सत्तारूढ़ गठबंधन में पीपीपी की सहयोगी पीएमएल-एन ने इसकी जांच के लिए आयोग के गठन की मांग की है।
पीएमएल-एन के प्रवक्ता सिद्दीकुल फारूक ने कहा कि जरदारी की टिप्पणी कारगिल मुद्दे की जांच के लिए आयोग के गठन की जरूरत को रेखांकित करती है। पीएमएल-एन लंबे समय से इसकी मांग करती आई है। एक भारतीय चैनल के साथ साक्षात्कार में जरदारी ने कहा था कि कारगिल प्रकरण के लिए मुशर्रफ और शरीफ दोनों जिम्मेदार हैं। फारूक ने कहा कि पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन और अमेरिकी सेना की मध्य कमान के पूर्व प्रमुख जनरल एंथनी जिन्नी समेत कई नामी गिरामी हस्तियों ने यह साफ किया है कि शरीफ को कारगिल की जानकारी नहीं थी।
कारगिल में पाक सेना की संलिप्तता की जानकारी शरीफ को तब हो सकी जब तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने उन्हें इस बाबत फोन किया। फारूक ने जरदारी के इस बयान पर भी टिप्पणी की कि पीपीपी चाहती है कि मुशर्रफ गरिमा के साथ रुखसत हों। उन्होंने कहा कि पीएमएल-एन मुशर्रफ के खिलाफ महाभियोग के पक्ष में है।

दिल्ली के अवैध कालोनियों चल रही व्यापारिक प्रतिष्ठानों के भविष्य का फैसला कल

नयी दिल्ली, ६ जुलाई. वार्ता. उच्चतम न्यायालय राजधानी दिल्ली की उन १४०० अनधिकृत कालोनियों में चल रहे व्यावसायिक प्रतिष्ठानों के भविष्य का फैसला कल करेगा जो दिल्ली मास्टर प्लान २०२१ द्वारा संरक्षित नहीं हैं
न्यायमूर्ति अरिजीत पसायत के नेतृत्व वाली पीठ ने मास्टर प्लान २०२१ के तहत संरक्षित अनधिकृत कालोनियों में तबतक व्यावसायिक कार्य जारी रखने का आदेश दिया था जबतक मास्टर प्लान को चुनौती देने वाली याचिकाओं का अंतिम निपटारा नहीं हो जाता ।
न्यायालय इस मास्टर प्लान के विभिन्न पहलुओं की जांच कर रहा है. जिसमें १४०० अनधिकृत कालोनियों के नियमितीकरण. अन्य अनियमित कालोनियों एवं इनमें रहने वाले २५ लाख लोगों के भविष्य के बारे में विचार करने की मांग की गयी है ।
न्यायालय ने केंद्र सरकार० दिल्ली विकास प्राधिकरण० डीडीए० और दिल्ली सरकार से यह भी पूछा है कि क्या इन कालोनियों के लिए पानी, बिजली, स्कूल, सडक, अस्पताल जैसी मूलभूत सुविधाओं का प्रावधान है ।
दिल्ली नगर निगम ने गत शुक्रवार को न्यायालय में हलफनामा दायर कर मास्टर प्लान २०२१ के तहत असंरक्षित क्षेत्रों में सीलिंग की कार्रवाई की तिथि इस आधार पर टालने की अनुमति मांगी हैं कि डीडीए कुछ और क्षेत्रों को मिश्रित उपयोग की भूमि के रूप में चिह्नित करने जा रहा है1 ऐसी स्थिति में डीडीए की ओर से अधिसूचना जारी होने तक सीलिंग की कार्रवाई नहीं होनी चाहिए ।
सीलिंग पर नजर रखने के लिए उच्चतम न्यायालय की ओर से नियुक्त निगरानी समिति ने भी अपनी रिपोर्ट सौंप दी है। जिसमें इस बात को लेकर शिकायत की गयी है कि निगम न्यायालय के आदेश पर अमल की दिशा में अपने कदम वापस खींच रहा है ।
गर्मी की छुट्टी के बाद उच्चतम न्यायालय कल से खुल रहा है ।

मंहगाई के मुद्दे पर विश्व बैंक ने अमेरिका पर बढ़ाया दबाव

लंदन। विश्व बैंक ने दुनिया भर में खाद्य पदार्थो की महंगाई का ठीकरा भारत और चीन पर फोड़ने वाले अमेरिका को ही इसके लिए जिम्मेदार ठहराया है। अमेरिका का दावा ठुकराते हुए विश्व बैंक ने कहा है कि जैव ईधन के इस्तेमाल से दुनिया में खाद्य पदार्थो की कीमतों में ७५ फीसदी तक की बढ़ोतरी हुई है। इससे अमेरिका और यूरोपीय देशों पर जैव ईधन का इस्तेमाल रोकने का दबाव बढ़ गया है।
ब्रिटेन के अखबार 'द गार्जियन' में प्रकाशित विश्व बैंक की इस रिपोर्ट में यह खुलासा किया गया है। यह रिपोर्ट अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त अर्थशास्त्री डान मिशेल द्वारा किए गए विस्तृत विश्लेषण के आधार पर तैयार की गई है। इसमें दिए गए आंकड़े अमेरिकी सरकार के उस दावे को झुठलाते हैं, जिसमें अमेरिका ने कहा था कि जैव ईधन का इस्तेमाल करने से खाने-पीने की चीजों के दामों में तीन फीसदी से भी कम की वृद्धि हुई है।
रिपोर्ट के अनुसार वर्ष २००२ से फरवरी २००८ के बीच अनाज के दामों में १४० फीसदी तक की वृद्धि हुई है। ऊर्जा और उर्वरक की कीमतों में बढ़ोतरी से खाद्यान्न के दामों में सिर्फ १५ फीसदी का ही इजाफा हुआ है, जबकि जैव ईधन के इस्तेमाल से इनकी कीमतें ७५ फीसदी तक बढ़ी है।
अखबार के मुताबिक इस साल अप्रैल में तैयार की गई विश्व बैंक की यह रिपोर्ट अमेरिका में सिर्फ इसलिए प्रकाशित नहीं की गई, क्योंकि इससे राष्ट्रपति जार्ज बुश को आलोचना का सामना करना पड़ता।
गौरतलब है कि बुश ने विश्व में खाद्य पदार्थो की कीमतों में बढ़ोतरी के लिए भारत और चीन में अनाज के 'अति उपभोग' को जिम्मेदार ठहराया था। मगर विश्व बैंक की रिपोर्ट में इसे सही नहीं माना गया है।
विश्व बैंक की रिपोर्ट में नए तथ्य उजागर होने से अमेरिका और यूरोप के कई देशों पर दबाव बढ़ गया है। ये देश पर्यावरण के लिए घातक ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन रोकने और आयातित तेल पर निर्भरता खत्म करने के लिए जैव ईधन का इस्तेमाल कर रहे हैं।

आम भारतीय मुसलमान का परमाणु करार से कोई सरोकार नहीं

नई दिल्ली, ६ जुलाई-परमाणु करार के मुद्दे पर जहां आम मुसलमानों में कोई दिलचस्पी नहीं है, वहीं मुसलिम नेता भी इसे कोई तवज्जो देने के मूड में नहीं हैं। इस मसले पर राजनीतिक दल जरूर तुष्टिकरण की नीति अपनाने की कोशिश कर रहे हैं। इसके बावजूद मुसलिम राजनीति में गर्माहट नहीं ला सके हैं।
परमाणु करार को भले ही मुसलिम राजनीति के चश्मे से देखा जा रही है, लेकिन आम मुसलमान इससे पूरी तरह बेखबर हैं। परमाणु करार क्या है? ज्यादातर लोगों को अभी इसकी जानकारी तक नहीं है। अलबत्ता कुछ राजनीतिक दल जरूर मुसलमानों को खुश करने के लिए इसकी आड़ ले रहे हैं। आम मुसलमानों का मानना है कि परमाणु करार होने या न होने से न तो उनकी आर्थिक स्थिति सुदृढ़ होने जा रही है, न ही उनकी सुरक्षा पर कोई फर्क पड़ रहा है।
मुसलिम बहुल तुर्कमान गेट इलाके के निवासीहाजी इदरिश का मानना है कि देश के मुसलमान की चिंता रोजगार और सुरक्षा को लेकर रहती है। परमाणु करार जैसे मुद्दे आते-जाते रहते हैं, इनका मुसलमानों से कोई लेना-देना नहीं है। यह पूछने पर कि परमाणु करार क्या है? उनका जवाब था कि मुझे सिर्फ इतना मालूम है कि अमेरिका इसकी हिमायत कर रहा है, जबकि और वामपंथी दल मुखालफत।
वहीं परमाणु समझौते का दारूल उलूम देवबंद के नायब मोहतमिम मुफ्ती अहसान कासमी का कहना है कि इससे मुसलमानों का कुछ लेना-देना नहीं है। राजनैतिक दलों द्वारा मुसलमानों के समर्थन एवं विरोध से इसे जोड़ना बिल्कुल गलत है। उनका कहना है कि परमाणु करार देशहित में है या नहीं है, इसका फैसला वैज्ञानिकों को करना चाहिए, न कि मुसलिम नेताओं को। बाबरी मसजिद एक्शन कमेटी के पूर्व प्रवक्ता जावेद हबीब का कहना है कि परमाणु करार को मुसलमानों से जोड़कर देखना उनके साथ नाइंसाफी है। उन्होंने कहा कि परमाणु करार में क्या है, कांग्रेस को इसका खुलासा करना चाहिए। इसके कार्यान्वयन से न तो मुसलमानों में निराशा है, न ही किसी किस्म का उत्साह।