नई दिल्ली, २३ जुलाई-रामसेतु प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने कहा है कि भगवान राम ने अपनी पत्नी सीता को छुड़ाने के लिए श्रीलंका जाते समय रामसेतु बनवाया था लेकिन लौटते समय उसे खुद राम ने तोड़ दिया था। सरकार की ओर से वरिष्ठ वकील एफएस नरीमन ने यह दलील कंबन रामायण का हवाला देते हुए दी।
नरीमन के मुताबिक, ऐसे में सरकार किसी सेतु या पुल को नहीं नष्ट कर रही क्योंकि किसी पुल का अस्तित्व नहीं था। फिर भी सरकार ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के सुझाव पर अपनी प्रतिक्रिया में सेतुसमुद्रम शिपिंग कैनाल प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए वैकल्पिक मार्ग अपनाने पर रजामंदी जताई। इससे रामसेतु को छोड़े जाने के आसार बढ़ गए हैं।
मुख्य न्यायाधीश केजी बालाकृष्णन की अध्यक्षता वाली पीठ ने नरीमन को सुझाव दिया कि सरकार को आस्था और जीवमंडल के बीच संतुलन के लिए कुछ करना चाहिए। बेंच में शामिल जस्टिस रवींद्रन ने यह भी सुझाव दिया कि जब कोई मुद्दा नहीं हो तो सरकार को इसे बनाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए।
नरीमन ने इन सुझावों से सहमति दिखाते हुए शीर्ष कोर्ट को आश्वस्त किया कि वे सरकार को सुझाव देंगे कि वह इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार करे।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को सुझाव दिया कि वह इस पर विचार करे कि वैज्ञानिक, तकनीकी, आर्थिक और सबसे महत्वपूर्ण राजनीतिक लिहाज से क्या थोड़ा बदलाव उचित होगा।
इससे पहले, पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ. सुब्रमणियम् स्वामी और तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जे जयललिता समेत याचिकाकर्ताओं के वकीलों ने कोर्ट से रामसेतु को राष्ट्रीय विरासत घोषित करने तथा इसे नष्ट नहीं करने की मांग करते हुए अपनी दलीलें दीं।