Sep 12, 2008

निरक्षरता का कलंक झेल रहे है हिंदी भाषी राज्य

नई दिल्ली, १३ सितम्बर- राष्ट्रीय राजनीति में हिंदी भाषी राज्य भले ही मजबूत दखल रखते रहे हों, लेकिन पढ़ाई-लिखाई के मामले में उनके माथे पर अब भी बड़ा कलंक है। यहां तक कि देश से निरक्षरता न खत्म होने की सबसे बड़ी वजह यही राज्य हैं। सरकार के एक आला अफसर ने तो लगभग पचास प्रतिशत अनपढ़ों के लिए खुले तौर पर उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड जैसे आधा दर्जन हिंदी भाषी राज्यों को जिम्मेदार ठहराया है।
वैसे तो अभी बीते आठ सितंबर को ही सरकार ने अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस पर देश में निरक्षरता मिटाने की प्रतिबद्धता फिर दोहराई है। उसने बड़े गर्व से अनुसूचित जाति में १७ प्रतिशत और जनजाति में १७.५ प्रतिशत साक्षरता दर बढ़ने का गुणगान किया। लेकिन अनपढ़ों को लेकर उत्तर भारत के राज्य उसकी चिंता को ज्यादा बढ़ा रहे हैं। मानव संसाधन विकास मंत्रालय में स्कूल शिक्षा एवं साक्षरता विभाग के सचिव ए।के. रथ के मुताबिक, 'उत्तर भारत, खास तौर से हिंदी बोलने वाले सिर्फ पांच राज्यों-उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, राजस्थान - में ही देश के लगभग पचास प्रतिशत निरक्षर हैं।' उसके बाद किसी हद तक आंध्र प्रदेश, उड़ीसा और पश्चिम बंगाल की स्थिति भी इस मामले में बदतर ही है।
२००१ की जनगणना के आधार पर देखें तो उस समय देश में १५ साल से ऊपर के २६ करोड़ लोग निरक्षर थे। सात साल से ऊपर के निरक्षरों को जोड़ देने पर यह आंकड़ा तीस करोड़ से भी ऊपर पहुंचता था। सरकार अब ११ वीं योजना में २०१२ तक पूरी आबादी के ८० प्रतिशत लोगों को साक्षर बनाने का लक्ष्य लेकर चल रही है। इस योजना में भी लगभग डेढ़ साल बीत चुका है और स्थिति यह है कि ३०४ जिले ऐसे हैं, जहां साक्षरता दर राष्ट्रीय औसत [कुल आबादी का लगभग ६५ प्रतिशत] से भी कम है। इन ३०४ जिलों में भी २६० ऐसे हैं, जहां महिलाओं की साक्षरता दर पचास प्रतिशत से भी कम है। सरकार जहां अनुसूचित जाति और जनजाति में साक्षरता दर बढ़ने का गुणगान कर रही है, वहीं १७० जिलों में अनुसूचित जाति के पचास प्रतिशत से भी कम लोग साक्षर हैं। आदिवासियों के मामले में २८० जिले इस श्रेणी में आते हैं।
वैसे सरकार इस मामले में गंभीर जरूर दिखने लगी है। उसने दसवीं योजना में जहां साक्षरता के लिए १२०० करोड़ रुपये का बजट रखा था, वहीं ११ वीं योजना में उसे बढ़ाकर छह हजार करोड़ कर दिया है।

तीन भारतीय है फोर्ब्स वेब अरबपतियों में

न्यूयॉर्क, १२ सितंबर- 'इंडियाबुल्स' के समीर गहलौत और पार्टी गेमिंग के संस्थापक अनुराग दीक्षित सहित तीन भारतीयों को अमेरिकी पत्रिका 'फोर्ब्स' की वेब अरबपतियों की सूची में शामिल किया गया है।
फोर्ब्स की रिपोर्ट के मुताबिक इंटरनेट बूम ने ३४ उद्यमियों को विश्व के सबसे अमीर व्यक्तियों की फेहरिस्त में शामिल कर दिया है, जिनका कुल नेटवर्थ १०९.७ अरब डॉलर है।
पत्रिका की वेब अरबपति सूची में गूगल के संस्थापक सर्गेई ब्रिन का नेटवर्थ १०९.७ अरब डॉलर, जबकि लारी पेज का नेटवर्थ १८.६ अरब डॉलर है। गहलौत का नेटवर्थ १.२ अरब डॉलर है। गहलौत भारत के स्वयं स्थापित उद्योगपति हैं। उन्होंने कॉलेज के दो सहपाठियों के साथ मिलकर १९९९ में इंडियाबुल्स की स्थापना की थी और अभी वे कंपनी के मुखिया हैं।
दूसरी ओर कवितर्क राम श्रीराम सूची में शामिल दूसरे इन्नोवेटर हैं, जिनका नेटवर्थ १.८ अरब डॉलर है। वे जॉब साइट नौकरी डॉट कॉम के मालिक हैं। श्रीराम ने वर्ष २००७ में ऑनलाइन क्लासीफाइड साइट स्टम्बलअपान डॉट को ईबे को बेच दिया था। ऑनलाइन गैंबलिंग फर्म पार्टी गेमिंग के अनुराग दीक्षित सूची में शामिल तीसरे भारतीय हैं और उनका नेटवर्थ १.६ अरब डॉलर है।
पत्रिका ने दीक्षित को डेवलपमेंटल इंजीनियर से ऑनलाइन गैंबलिंग मुगल बनी हैसियत करार दिया है। दीक्षित नई दिल्ली स्थित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) के कम्प्यूटर साइंस एवं इंजीनियरिंग डिग्रीधारी हैं।

बंद किया सहारा ने गैर बैंकिंग कारोबार

मुंबई, १२ सितम्बर- सुब्रत राय सहारा प्रवर्तित सहारा इंडिया इन्वेस्टमेंट कारपोरेशन [एसआईआईसीएल] गैर बैंकिंग वित्तीय कारोबार से हट गई है।
भारतीय रिजर्व बैंक की ओर से जारी एक बयान में बताया गया है कि सहारा इंडिया पैरा बैंकिंग का पंजीकरण रद्द कर दिया गया है। इसमें कहा गया है कि सहारा ग्रुप की एक कंपनी एसआईआईसीएल गैर बैंकिंग वित्तीय संस्थान के रूप में अब काम नहीं कर सकती। केंद्रीय बैंक ने कहा है कि एसआईआईसीएल स्वेच्छा से गैर बैंकिंग वित्ताीय कारोबार छोड़ा है और उसका पंजीकरण प्रमाणन ११ अगस्त २००८ से रद्द कर दिया गया है।
दूसरी तरफ, इस फैसले से उन लाखों निवेशकों में असंतोष उत्पन्न होने की आशंका है कि उनके जमा किए गए रुपयों का क्या होगा। हांलाकि इस संबंध में अभी तक कोई जानकारी न तो आरबीआई और न ही सहारा इंडिया की तरफ से आई है।