Sep 2, 2008

असम में बाढ़ का प्रकोप १० लाख लोग प्रभावित

गुवाहाटी, २ सितम्बर- असम में मंगलवार को भी बाढ़ से स्थिति गंभीर बनी हुई है। राज्य में बाढ़ से लगभग १० लाख लोग प्रभावित हुए है। वहीं सरकारी आंकड़ों के अनुसार बाढ़ की चपेट में आने से १५ लोगों की मौत हो चुकी है।
सेना के जवान बाढ़ प्रभावित इलाकों में फंसे लोगों को सुरक्षित स्थानों तक पहुंचाने में जुटे हुए है। राज्य के राहत और पुनर्वास मंत्री भूमिधर बर्मन ने बताया कि राज्य के २७ जिलों में से १६ जिले बाढ़ से प्रभावित है।
बर्मन ने कहा कि लगभग १० लाख लोग बाढ़ के कारण बेघर हो गए और १५ की मौत हो गई है। मंगलवार को बाढ़ के संबंध में राज्य सरकार द्वारा जारी एक बयान में कहा गया है कि १,३४६ गांव बाढ़ की चपेट में आए है।
बयान के अनुसार २,६९,६०९ हेक्टेयर भूमि बाढ़ से प्रभावित हुई है। बर्मन ने कहा कि कामरूप, लखीमपुर, धेमाजी और मोरीगांव जिले बाढ़ से सबसे अधिक प्रभावित हुए है। ब्रह्मापुत्र नदी राज्य में कम से कम १२ स्थानों पर खतरे के निशान से ऊपर बह रही है। मौसम विभाग ने आने वाले दिनों में राज्य में और अधिक बारिश होने की आशंका व्यक्त की है।

नवनेथम बनीं संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त

संयुक्त राष्ट्र, २ अगस्त- भारतीय मूल की दक्षिण अफ्रीकी न्यायविद् नवनेथम पिल्लै ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायोग के मुखिया का कामकाज संभाल लिया है।
पिल्लै को संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा महासचिव बान की मून की सिफारिश पर जुलाई में नया मानवाधिकार उच्चायुक्त चुना गया था। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायोग १९९३ में गठित किया गया था। पिल्लै पांचवीं उच्चायुक्त हैं। पिल्लै के पिता एक तमिल बस ड्राइवर थे। उनका जन्म १९४१ में डरबन शहर में हुआ था। वह २००३ में नीदरलैंड्स के हेग स्थित अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण की जज एवं अध्यक्ष रहीं।
१९६७ में दक्षिण अफ्रीका के नाटाल प्रांत में मानवाधिकार मामलों के वकील के रूप में कैरियर शुरू करने वाली पिल्लै १९९५ दक्षिण अफ्रीकी हाईकोर्ट की प्रथम अश्वेत महिला जज बनीं। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त पद की होड़ में पाकिस्तान की हिना जलानी भी शामिल थीं। लेकिन उन्हें आवश्यक समर्थन नहीं मिल पाया।

बंदरों को उत्‍पीड़क प्राणी का दर्जा

देहरादून, 2 सितम्‍बर- गली-मुहल्‍लों की छतों पर कूदते-फांदते बंदर जो कभी घरों में घुस कर खाने का सामान उठा ले जाते हैं और जरा सी छेड़खानी पर किसी को भी काटने दौड़ पड़ते हैं।
जंगलों को छोड़ कर शहर के गली मोहल्लों और मंदिरों को अपना ठिकाना बनाने वाले बंदर जल्‍द ही उत्‍पीड़क प्राणी की श्रेणी में गिना जाएगा। उत्तराखंड में बंदर को अब उत्पीड़क प्राणी घोषित करने की तैयारी चल रही है।
उत्‍तराखण्‍ड में बंदरों के उत्पात की खबरें पहले भी कई शहरों से आती रही हैं, लेकिन अब जंगल कट जाने के कारण वन्य बहुल उत्तराखंड में भी अब बंदर जंगलवासी की बजाय शहरी कहलाना पसंद कर रहे हैं।
बाजार, दुकान, स्कूल, मंदिर, आवासीय कालोनियों यानी सभी जगहों पर बंदरों की ढिठाई और उपद्रव बढ़ता जा रहा है। प्रदेश में धार्मिक स्थलों की बहुलता के चलते बंदरों को खाने-पीने की भी कोई कमी नहीं है।
वन विभाग के सूत्रों की मानें तो इससे निपटने के लिए राज्य वन्य जीव बोर्ड में बंदरों को उत्पीड़क प्राणी घोषित करने की तैयारी की जा रही है। यदि बंदर को उत्‍पीड़क प्राणी घोषित कर दिया गया, तो उसके बाद इन्हें पकड़कर जंगलों में खदेड़ने के लिए कठोर कदम उठाए जाएंगे।