कानपुर, २७ जुलाई बेकारी, गरीबी और भूख-इंसान के इन सबसे बड़े दुश्मनों ने जाति का दंभ तोड़ा है और कालेजों से मिली डिग्रियों की निरर्थकता भी साबित की है। बानगी है उत्तर प्रदेश के एक लाख गांवों में सफाईकर्मियों की हो रही नियुक्तियां। केवल कानपुर नगर में १०२० पदों के लिए आवेदन करने वालों में ३५ एमएड और ४९ बीएड हैं। कुछ एलएलबी हैं, तो कुछ शास्त्री उपाधि धारक। खास बात यह कि इनमें २५० ब्राह्माण, १७९ क्षत्रिय, व ३३ कायस्थ अभ्यर्थी हैं।
यह खबर बेशक कानपुर की है, लेकिन इसका महत्व सार्वदेशिक है। जाति का दंभ और रोजगारपरक शिक्षा का अभाव-यह दोनों समस्याएं पूरे देश में हैं और जिनसे मुक्ति की कोशिश प्राथमिकता पर होनी चाहिए। बेरोजगारी दूर करने के सरकारी प्रयासों के प्रति लोगों में इसीलिए आक्रोश भी है। वे पूछ रहे हैं कि आखिर उस एमए-एमएड या शास्त्री की उपाधि की उपयोगिता क्या है, जो दो वक्त की रोटी न दिला सके। कानपुर नगर में सफाई कर्मियों के १०२० पदों के लिए ९०३० आवेदन आए हैं। इनमें एमएड डिग्री धारक शास्त्री नगर के कैलाश मिश्र, अंजनी सिंह, नौबस्ता के कमलेश कुमार, कल्याणपुर के राजेंद्र सिंह, कुसुमलता यादव समेत ३५, बीए, बीएड डिग्रीधारी जाजमऊ निवासी राधिका यादव, रेल बाजार निवासी कुमकुम राय, नीरज सिंह, फूलबाग के अजय बहादुर सिंह, विकास बाजपेयी, चमनगंज निवासी शोएब आलम, गुफरान अहमद समेत ४९, शास्त्री उपाधि धारक जयंत सिंह, रामपाल, सेवक राम वर्मा समेत १९ लोग हैं।
ये नियुक्तियां पंचायत के आरक्षण प्रावधानों के अनुसार ही हो रही हैं और आवेदक भी हर जाति-वर्ग के हैं। कल्याणपुर के आशुतोष मिश्र, नारद पांडेय, गुजैनी के राधेश्याम त्रिवेदी जैसे २५० ब्राह्माण, बिरहाना रोड के संजय श्रीवास्तव, दिव्या श्रीवास्तव समेत ३३ कायस्थ और जनरलगंज के दीपेंद्र सिंह, आशू ठाकुर, फूलबाग के नीतेंद्र सिंह समेत १७९ क्षत्रिय अभ्यर्थी भी सफाई कर्मचारी बनने की लाइन में हैं। सराय सिरोही पड़री निवासी योगेंद्र सिंह, बर्रा आठ निवासी राधेश्याम सिंह एलएलबी हैं और सफाई कर्मचारी पद के लिए आवेदक हैं। कई आवेदक 'जुगाड़' भी लगा रहे हैं।
यहां सवाल यह भी उठता है कि क्या ये लोग वास्तव में सफाईकार्य ईमानदारी से करेंगे, क्योंकि गांव में वर्ण व्यवस्था अभी मूंछ का सवाल है। जिला पंचायती राज अधिकारी केएस अवस्थी कहते हैं कि अभ्यर्थियों से झाड़ू लगाने का अनुभव प्रमाण पत्र लिया जाएगा। उनके काम की निगरानी होगी और शिकायत पर सेवा नियमावली के तहत कार्रवाई होगी।
वर्ष २००५ में बीएड की डिग्री लेने वाले असैनिया निवासी अमित कुमार अभी तक बेरोजगार हैं। बकौल अमित वह सरकारी नौकरी के लिए झाड़ू लगाने को तैयार हैं। शर्म की तो दो जून की रोटी भी नहीं मिलेगी।
सराय मसवानपुर निवासी मनोरमा बीए करने के बाद नर्सरी टीचर ट्रेनिंग कोर्स कर रही हैं। वह कहती हैं कि सभी शर्म करेंगे, तो फिर कौन उठायेगा कूड़ा। चोरी तो नहीं कर रही हूं। अपराधी बनने और दूसरों पर आश्रित होने से अच्छा है झाड़ू लगाना।
सर्दे गोपालपुर के यदुनाथ सिंह बीए कर सफाई कर्मचारी बनने को तैयार हैं। वे इसके पीछे मजबूरी मानते हैं। हालांकि इसे बुरा भी नहीं मानते। वह कहते हैं कि गंदगी उठाने में कोई शर्म नहीं होगी।
No comments:
Post a Comment