Jul 6, 2008

मंहगाई के मुद्दे पर विश्व बैंक ने अमेरिका पर बढ़ाया दबाव

लंदन। विश्व बैंक ने दुनिया भर में खाद्य पदार्थो की महंगाई का ठीकरा भारत और चीन पर फोड़ने वाले अमेरिका को ही इसके लिए जिम्मेदार ठहराया है। अमेरिका का दावा ठुकराते हुए विश्व बैंक ने कहा है कि जैव ईधन के इस्तेमाल से दुनिया में खाद्य पदार्थो की कीमतों में ७५ फीसदी तक की बढ़ोतरी हुई है। इससे अमेरिका और यूरोपीय देशों पर जैव ईधन का इस्तेमाल रोकने का दबाव बढ़ गया है।
ब्रिटेन के अखबार 'द गार्जियन' में प्रकाशित विश्व बैंक की इस रिपोर्ट में यह खुलासा किया गया है। यह रिपोर्ट अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त अर्थशास्त्री डान मिशेल द्वारा किए गए विस्तृत विश्लेषण के आधार पर तैयार की गई है। इसमें दिए गए आंकड़े अमेरिकी सरकार के उस दावे को झुठलाते हैं, जिसमें अमेरिका ने कहा था कि जैव ईधन का इस्तेमाल करने से खाने-पीने की चीजों के दामों में तीन फीसदी से भी कम की वृद्धि हुई है।
रिपोर्ट के अनुसार वर्ष २००२ से फरवरी २००८ के बीच अनाज के दामों में १४० फीसदी तक की वृद्धि हुई है। ऊर्जा और उर्वरक की कीमतों में बढ़ोतरी से खाद्यान्न के दामों में सिर्फ १५ फीसदी का ही इजाफा हुआ है, जबकि जैव ईधन के इस्तेमाल से इनकी कीमतें ७५ फीसदी तक बढ़ी है।
अखबार के मुताबिक इस साल अप्रैल में तैयार की गई विश्व बैंक की यह रिपोर्ट अमेरिका में सिर्फ इसलिए प्रकाशित नहीं की गई, क्योंकि इससे राष्ट्रपति जार्ज बुश को आलोचना का सामना करना पड़ता।
गौरतलब है कि बुश ने विश्व में खाद्य पदार्थो की कीमतों में बढ़ोतरी के लिए भारत और चीन में अनाज के 'अति उपभोग' को जिम्मेदार ठहराया था। मगर विश्व बैंक की रिपोर्ट में इसे सही नहीं माना गया है।
विश्व बैंक की रिपोर्ट में नए तथ्य उजागर होने से अमेरिका और यूरोप के कई देशों पर दबाव बढ़ गया है। ये देश पर्यावरण के लिए घातक ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन रोकने और आयातित तेल पर निर्भरता खत्म करने के लिए जैव ईधन का इस्तेमाल कर रहे हैं।

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