Aug 10, 2008

समलैंगिक संबंध: धारा ३७७ पर असमंजस में कानूनविद्

नई दिल्ली, १० अगस्त-समलैंगिक संबंधों को लेकर धारा ३७७ जमानती है अथवा गैर जमानती इसे लेकर कानूनविद् असमंजस में हैं। हालांकि, अधिकतर इसे गैर जमानती मानते हैं। इसका खास कारण यह है कि कानून की नई किताबें तो दूर पुरानी से पुरानी किताबों में भी इस धारा को गैर जमानती दिखाया गया है। जबकि भारत सरकार के कानून मंत्रालय से प्रकाशित किताबों में इस धारा को जमानती दिखाया गया है। लेकिन ये किताबें शायद ही कहीं उपलब्ध हैं। ऐसे में समलैंगिक संबंधों के मामले में आरोपियों को जमानत नहीं मिल पाती है। फिलहाल कानूनविद् इस धारा को गैर जमानती मान कर चल रहे हैं। इस धारा के तहत न्यूनतम दस साल व अधिकतम उम्रकैद तक की सजा का प्रावधान है।
ज्ञात है कि सन् १९९९ में दिल्ली हाईकोर्ट की दो सदस्यीय खंडपीठ ने इस संबंध में दायर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए इस धारा को जमानती करार दिया था। दरअसल, भैंस के साथ होमगार्ड के सिपाही धर्मवीर द्वारा यौन संबंध स्थापित करने पर उसके खिलाफ धारा ३७७ के तहत मामला दर्ज किया गया था। इस संबंध में निचली अदालत में महानगर दंडाधिकारी व सेशन जज के जमानत देने से इंकार करने पर उसने आखिरकार दिल्ली हाईकोर्ट में जमानत अर्जी दायर की थी। जिस पर तत्कालीन जस्टिस उषा मेहरा व जस्टिस एस.एन. कपूर की पीठ ने अधिवक्ता आनंद की दलील सुनने के बाद आरोपी धर्मवीर को जमानत दे दी थी। इतना ही नहीं पीठ ने रजिस्ट्रार जनरल को यह भी निर्देश दिया था कि वह सर्कुलर जारी कर सभी महानगर दंडाधिकारियों व सेशन जजों को यह बता दें कि धारा ३७७ जमानती अपराध है। इसलिए इस धारा के तहत आरोपियों को जमानत दे दी जाए।
अदालत के निर्देश पर रजिस्ट्रार जनरल ने सर्कुलर जारी कर न्यायाधीशों को इस बात की जानकारी दे दी थी। साथ ही कोर्ट ने इस धारा के तहत तिहाड़ जेल में बंद विचाराधीन आरोपियों को जमानत पर रिहा करने का आदेश भी जारी किया था, जिससे एक ही दिन में सैकड़ों आरोपी छोड़ दिए गए थे। दलील में कहा गया था कि भारत सरकार की किताबों में सीआरपीसी की धारा ३७७ के सेड्यूल दो में इस धारा को जमानती दिखाया गया है, जो कदापि गलत नहीं हो सकता है। जिस पर पीठ ने यह आदेश जारी किया था। लेकिन समय बीतने के साथ-साथ कानून से जुड़े लोग भी इस बात को भुला बैठे।
जिससे इस धारा के तहत अब आरोपियों को जमानत नहीं मिल पाती है। कानून के जानकार इस पर आश्चर्य जता रहे हैं कि आखिर प्राइवेट पब्लिकेशन के कानून की किताबों में इस धारा को गैर जमानती कैसे दिखाया गया है। उनका यह भी कहना है कि हो सकता है कि इस धारा में संशोधन किया गया हो और इसकी जानकारी प्रकाशक को नहीं हो। लेकिन तब भी सरकार ने अब तक इस मामले में अधिसूचना जारी क्यों नहीं किया। अगर किसी धारा में संशोधन किया जाता है तो नई किताबों में उस धारा के साथ संशोधन शब्द का जिक्र किया जाता है। लेकिन किताबों में इस धारा के साथ इस बात का भी जिक्र नहीं है। जिसके चलते कानून के जानकार भी वर्तमान में इस धारा को गैर जमानती मानकर चल रहे हैं।
हालांकि, वयस्कों के बीच समलैंगिक संबंधों को गैर आपराधिक कृत्य घोषित करने की मांग अब विदेशों में ही नहीं देश में भी उठने लगी है। इस मामले को लेकर हाईकोर्ट में भी याचिका दायर की गई है, जिसपर सुनवाई चल रही है। याचिका में भारतीय दंड संहिता की धारा ३७७ में संशोधन किए जाने की मांग की गई है जिसमें समलैंगिक गतिविधियों पर उम्रकैद तक की सजा का प्रावधान है। यह याचिका गैर सरकारी संगठन नाज फाउंडेशन ने दायर की है, जिसमें मांग की गई है कि धारा ३७७ को असंवैधानिक घोषित किया जाए। याचिका में कहा गया है कि धारा ३७७ से किसी नागरिक के मूलभूत अधिकार का उल्लंघन होता है। इससे अवैध यौन संबंधों को बढ़ावा मिलता है। यह भी कहा गया है कि समलैंगिक संबंधों की नैतिक आधार पर आलोचना बेशक की जा सकती है।
लेकिन वयस्कों की सहमति वाले समलैंगिक संबंधों को अपराध मानना अवैध है। केंद्र ने इस पर अपने जवाब में विरोधाभासी रुख अपनाया है। गृह मंत्रालय जहां अपराध प्रावधन को बरकरार रखने के पक्ष में है। वहीं स्वास्थ्य मंत्रालय वयस्कों की सहमति वाले समलैंगिक संबंधों के मामले में धारा ३७७ के कार्यान्वयन के खिलाफ है। गृह मंत्रालय का कहना है कि भारतीय समाज समलैंगिक संबंधों को कड़ाई से खारिज करता है। जबकि स्वास्थ्य मंत्रालय का कहना है कि समलैंगिक संबंधों को गैर आपराधिक कृत्य घोषित किए जाने पर लोगों में जागरुकता आएगी।
इस बीच केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डा. अंबुमणि रामदास ने भी बीते दिनों एक कार्यक्रम के दौरान समलैंगिकों के अधिकारों की पुरजोर वकालत की। उन्होने इस धारा को समाप्त किए जाने पर बल दिया, जिसके मुताबिक दो पुरुषों या दो महिलाओं के बीच शारीरिक संबंध स्थापित करना अपराध है। उन्होंने कहा कि यह धारा भेदभावपूर्ण है इसे हटाए जाने की जरूरत है। समलैंगिकों के हक के साथ खिलवाड़ नहीं होने दिया जाएगा।
ज्ञात हो कि पिछले दिनों समलैंगिकों ने जंतर मंतर पर इस धारा को समाप्त करने के लिए प्रदर्शन भी किया था। दो मंत्रालयों के विरोधाभासी बयानों पर कोर्ट ने अटार्नी जनरल की सहायता मांगी है। मुंबई हाईकोर्ट ने भी हाल ही में सेना के एक कैप्टन को इस मामले में राहत देते हुए कहा है कि सरकार इस धारा पर पुनर्विचार करे

2 comments:

Suresh Gupta said...

@समलैंगिकों के हक के साथ खिलवाड़ नहीं होने दिया जाएगा।

मेरी राय में तो यह सम्बन्ध ही ग़लत है, इसलिए कैसा हक और कौन सा हक़?

राज भाटिय़ा said...

लगता हे हम ने सच मे तरक्की कर ली हे, गोरो से चार कदम आगे जो जा रहे हे,