Jul 19, 2008

लेखन से कम होता है कैंसर का दर्द

न्यूयार्क, १९ जुलाई-अपनी भावनाएँ कागज पर उतारने वाले कैंसर रोगियों की न केवल पीड़ा कम होने लगती है, बल्कि उनकी हालत में भी सुधार होता है।
एक अध्ययन के मुताबिक चिकित्सा विज्ञान में इस तरह के लेखन को 'नैरेटिव मेडिसिन' कहा जाता है, जिसके जरिए गंभीर रूप से पीड़ित मरीजों और उनके डॉक्टरों के बीच संवाद स्थापित होता है।
बोस्टन स्थित न्यू इंग्लैंड मेडिकल सेंटर के डॉ. सोलडाड सिपेडा की अगुआई वाली अनुसंधान टीम के मुताबिक इस तरह की लेखनी से रोगियों को खुद को बेहतर ढंग से समझने में मदद मिलती है।
टीम ने कैंसर पीड़ित २३४ रोगियों को तीन समूहों में बाँटकर पहले को नैरेटिव लेखन के लिए, दूसरे को पीड़ा के लक्षणों के बारे में प्रश्नों का उत्तर देने तथा तीसरे समूह को केवल चिकित्सीय देखभाल के लिए छोड़ दिया। इनमें करीब सभी मरीज कम से कम औसत स्तर की कैंसर पीड़ा से जूझ रहे थे।
पहले समूह को तीन सप्ताह तक प्रति हफ्ते अपने काम पर २० मिनट का समय देते हुए यह लिखने को कहा गया कि कैंसर से उनकी रोजमर्रा की जिंदगी पर क्या असर पड़ता है।
टीम ने पाया अपनी भावनाएँ कागज पर उतारने वाले मरीजों की पीड़ा अन्य रोगियों की तुलना में कम हुई है और उनकी हालत में भी दूसरों के मुकाबले तेजी से सुधार हो रहा है। इस तरह का असर उन मरीजों में नहीं देखने को मिला, जो अपेक्षाकृत कम भावुक थे।
अध्ययन से यह निष्कर्ष निकाला गया कि लेखनी के जरिए भावनाएँ व्यक्त करना मरीजों के लिए फायदेमंद है। हालाँकि शोध टीम ने कहा कि गंभीर रूप से पीड़ित मरीजों को अपनी भावनाएँ व्यक्त करने में काफी परेशानी होती है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि गंभीर रूप से पीड़ित मरीजों को अपनी भावनाएँ व्यक्त करने के लिए प्रोत्साहित करने से उनकी हालत में सुधार होता है या नहीं, इसे जानने के लिए इस दिशा में और अध्ययन की जरूरत है। यह पता लगाने की भी जरूरत है कि अपनी आपबीती जुबान से कहने वाले मरीजों की हालत में सुधार होता है या नहीं।

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