Jul 24, 2008

आंतरिक सुरक्षा मामले को लेकर केंद्रीय गृह मंत्रालय हुआ सक्रिय

नई दिल्ली, २४ जुलाई- सरकार द्वारा विश्वासमत प्राप्त करते ही आंतरिक सुरक्षा के मुद्दे पर केंद्र सरकार दोहरे मोर्चे पर सक्रिय हो गई है। आंतरिक सुरक्षा के लिए दो सबसे बड़ी चुनौती नक्सलवाद और उत्तर-पूर्व राज्य के उग्रवाद की समस्या के समाधान के प्रयास के साथ ही आतंकवाद व सांप्रदायिक दंगे के पीड़ितों के जख्मों के लिए भी राहत का मरहम जुटाना शुरू कर दिया है।
राजनीतिक अनिश्चितता के दौरान बिल्कुल शांत पड़ा रहा गृह मंत्रालय का नार्थ ब्लाक स्थित कार्यालय बृहस्पतिवार को काफी व्यस्त था। उत्तर-पूर्व और खास तौर से असम में उग्रवादी घटनाओं के सिर उठाने से चिंतित गृह मंत्रालय ने उच्चस्तरीय बैठक कर स्थिति की समीक्षा की। बैठक में असम के मुख्य सचिव, पुलिस महानिदेशक, विशेष सचिव (आंतरिक सुरक्षा) और सीआरपीएफ व बीएसएफ के अलावा सेना व रक्षा मंत्रालय के आला अफसर भी मौजूद थे।
बैठक में मुख्य रूप से उल्फा के कुछ काडरों की तरफ से संघर्ष विराम तोड़े जाने और बोडो इलाके में हुई हिंसा के मुद्दे पर मुख्य रूप से चर्चा हुई। अधिकारी इस समस्या का समाधान निकालने का रास्ता तलाशने की कोशिश में लगे रहे और इस क्रम में एक समग्र रणनीति के तहत कुछ कदम उठाने की योजना भी बनाई गई। इसके साथ ही उत्तरी कछार जिले में चल रही बुनियादी ढांचे मसलन रेलवे लाइन आदि की सुरक्षा के संबंध में भी चर्चा हुई।
वही गृह मंत्रालय ने गुरुवार को ही आतंकवाद व दंगा पीड़ितों को सरकारी सहायता प्रदान करने के लिए दिशा-निर्देश भी जारी किए। इन्हें सभी राज्य सरकारों व केंद्रशासित राज्यों को भेज दिया गया है। इस योजना को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इसी वर्ष मार्च में अनुमोदन दिया था। इस योजना के तहत परिवार के मुखिया के मारे जाने या उसके पूरी तरह विकलांग होने की स्थिति में आश्रित को तीन लाख रुपये देने का प्रावधान है। यह राशि परिवार के एक या संयुक्त परिजनों के नाम स्थायी जमा योजना के तहत बैंक में भेज दी जाएगी। यह राशि त्रैमासिक रूप से ब्याज समेत आश्रित को मिल सकेगी।

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