Aug 29, 2008

भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर कमी आयी

नई दिल्ली, २९ अगस्त- भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर वित्त वर्ष २००८-०९ की पहली तिमाही में ७.९ प्रतिशत रही है । पिछले साल की पहली तिमाही में ये ८.८ प्रतिशत थी और उससे एक साल पहले विकास दर ९.२ प्रतिशत थी.
पर्यवेक्षकों के अनुसार ये पिछले तीन साल में अर्थव्यवस्था के विकास की सबसे धीमी गति है।
ये माना जा रहा है कि आर्थिक विकास दर का धीमा होना तय था क्योंकि भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) ने महँगाई को नियंत्रण में करने के लिए हाल में ब्याज दर बढ़ाया था। इसी के साथ तेल, खाद्य सामग्री की कीमतें भी बढ़ी थी और महँगाई पिछले १३ साल में सबसे ऊँचे स्तर पर पहुँच गई थी । महत्वपूर्ण है कि केंद्रीय वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने कहा था कि यदि सकल घरेलु उत्पाद पहली तिमाही के मुताबिक ही बाक़ी के साल में भी रहता है तो अर्थव्यवस्था की विकास दर लगभग आठ प्रतिशत ही रहेगी।
भारत सरकार के केंद्रीय सांख्यिकी संगठन (सीएसओ) के जुटाए आंकड़ों के मुताबिक वर्ष २००६-०७ में भारत की सकल घरेलु उत्पाद (जीडीपी) की विकास दर ९.६ प्रतिशत थी जो पिछले १८ साल में सबसे ज़्यादा थी ।
प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के सदस्य सौमेत्र चौधरी ने कहा है, "इन आँकड़ों से कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए। जब आप वित्तीय स्थिति को नियंत्रण में करने की कोशिश करते है तो विकास दर घटती ही है । लेकिन विकास दर बहुत ज़्यादा नहीं गिरी है क्योंकि पीछे का इतिहास देखा जाए तो ७.९ की विकास दर काफ़ी ऊँची है।"
निर्माण क्षेत्र की विकास दर लगभग आधी होकर ५.६ प्रतिशत हो गई जबकि इससे पहले ये १०.९ प्रतिशत थी। ११.८ प्रतिशत और बिजली क्षेत्र में विकास दर ७.३ प्रतिशत थी । कृषि और संबंधित क्षेत्रों में विकास दर पिछले साल के ४.४ प्रतिशत से घटकर तीन प्रतिशत रह गई ।
बिजली, गैस और पानी की सप्लाई अन्य प्रमुख क्षेत्र है जिनकी विकास दर में कमी आई है। पहले ये ७.९ प्रतिशत थी और अब ये घटकर २.६ प्रतिशत हो गई है ।
सेवा क्षेत्र, होटल, यातायात और संचार सेवाओं की विकास दर ज़्यादा नहीं घटी और ये पिछले साल के १३.१ के मुकाबले में ११.२ प्रतिशत थी. वित्तीय क्षेत्र, बीमा, व्यावसायिक सेवाओं की विकास दर १२.६ प्रतिशत के घट कर ९.३ प्रतिशत हो गई है ।

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