नई दिल्ली, ३ अगस्त- महिला आरक्षण विधेयक क्या एक बार फिर टल जाएगा। महिलाओं को राज्य विधायिकाओं और संसद में ३३ फीसदी आरक्षण दिए जाने के जटिल मुद्दे पर आम सहमति बनाने के लिए प्रमुख संसदीय समिति ने दो माह का समय और मांगा है। इसके बाद यह लाख टके का सवाल बन गया है कि क्या यह विधेयक एक बार फिर अधर में लटक जाएगा।
संसदीय समिति का कार्यकाल मंगलवार को समाप्त हो रहा है। समिति की अध्यक्षता कर रहे कांग्रेस के वरिष्ठ सांसद ई एम सुदर्शन नचिअप्पन ने राज्यसभा के सभापति हामिद अंसारी को पत्र लिख कर समयवृद्धि की मांग की है।
यह विधेयक एक दशक से भी अधिक समय से लंबित पड़ा है, क्योंकि कुछ दल आरक्षण में भी आरक्षण दिए जाने की मांग कर रहे हैं। विधि एवं न्याय विभाग की स्थायी संसदीय समिति ने विधेयक पर आम सहमति बनाने के लिए सदस्यों को पिछले माह एक प्रस्ताव दिया था।
नचिअप्पन का कहना है कि कई सदस्य इस प्रस्ताव का अध्ययन करने के लिए अतिरिक्त समय चाहते हैं, इसलिए समिति का कार्यकाल बढ़ाने की मांग की गई है। नए फार्मूले के तहत समिति ने संविधान में एक संशोधन का प्रस्ताव रखा है, ताकि विधेयक को कुछ आगे बढ़ाया जा सके। समिति चाहती है कि राज्यों को पिछड़ा वर्गो के बारे में निर्णय लेने का अधिकार दिया जाए ताकि ऐसे समूहों तक समुचित तरीके से पहुंचना सुनिश्चित हो सके।
नए प्रस्ताव में इस तथ्य को देखते हुए एक समझौता फार्मूला सुझाया गया है कि विभिन्न राजनीतिक दलों, गैर सरकारी संगठनों और अन्य पक्षों से बातचीत करने के बाद समिति यह मानती है कि इस विधेयक के लंबित होने का मुख्य कारण ओबीसी मुद्दा है।
केंद्र में सत्तारूढ़ संप्रग गठबंधन की नवीनतम सहयोगी समाजवादी पार्टी ने हाल ही में स्पष्ट किया था कि वह किसी तरह की जल्दबाजी नहीं करना चाहती।
समिति को दिए गए एक लिखित दस्तावेज में पार्टी ने कहा है कि वह विधेयक के वर्तमान स्वरूप के खिलाफ है। वह महिलाओं के कोटे के अंदर अन्य पिछड़ा वर्गो और अल्पसंख्यकों को आरक्षण देने की पक्षधर है
बहरहाल, मुख्य विपक्षी दल भाजपा का कहना है कि वह विधेयक का उसके वर्तमान स्वरूप में समर्थन करेगी। पार्टी ने संप्रग सरकार से कहा है कि वह इसे संसद के मानसून सत्र में ही पारित करे।
No comments:
Post a Comment