Jul 25, 2008

विकलांग बेटी ने ठेले पर खीच कर ले गई पिता की अर्थी, मुखाग्नि दी

गोरखपुर, २५ जुलाई- बड़हलगंज का पटना चौराहा। बारिश का मौसम। दोपहर दो बजे एक विकलांग लड़की ठेले पर अपने बूढे बाप की अर्थी लेकर मुक्तिपथ की ओर जा रही थी। लोग आश्चर्य से उसे देख रहे थे। सभी के मन में प्रश्न था कि आखिर कौन है यह लड़की ? कहां से आयी है और ठेले पर किसकी अर्थी लेकर जा रही है ? कुछ देर बाद बुधवंत नाम की इस विकलांग लड़की ने बाप की अर्थी को मुक्तिपथ पर ले जाकर विधिवत मुखाग्नि दी इस नजारे को देखकर लोग द्रवित हो गए और उनकी ऑंखें नम हो गयीं ।
बताया जा रहा है कि बिजनौर के ६५ वर्षीय सिक्ख सुरेन्द्रपाल सिंह पिछले तीस वर्षो से खजनी में रहते थे। ट्रैक्टर मैकेनिक श्री सिंह की काम के अभाव में माली हालत खस्ता थी। दो जून की रोटी मुश्किल से नसीब होती थी। पिछले वर्ष बरसात में उनकी पत्‍‌नी का देहांत हो गया। परिवार में उनके अलावा २२ वर्षीया एक बेटी बची। बुधवंत नामक इस बालिका का बायां हाथ नहीं है। सहजनवां के दीनदयाल उपाध्याय महिला महाविद्यालय से अभी उसने बीए द्वितीय वर्ष की परीक्षा दी है।
गरीबी की मार झेल रहे सुरेन्द्र पांच माह पूर्व काम की तलाश में खजनी छोड़ बड़हलगंज चले गए, लेकिन किस्मत ने यहां भी साथ नहीं दिया। मंगलवार रात उनके सीने में दर्द हुआ। विकलांग पुत्री बाप के इलाज के लिए इधर-उधर दौड़ी, नतीजा कुछ न निकला। अंतत: मंगलवार रात दवा के अभाव में सुरेन्द्र की मृत्यु हो गयी।
बुधवंत रात भर पिता के शव के पास बैठकर बिलखती रही। जैसे-तैसे सुबह हुयी तो उसने बिजनौर में अपने रिश्तेदारों को फोन किया। बड़हलगंज में वह लोग नए आए थे। लिहाजा उनकी जान-पहचान बहुत कम थी। पैसे से लाचार लड़की की समझ में नहीं आ रहा था कि वह पिता का अंतिम संस्कार कैसे करे।
सुबह पिता के एक साथी के अलावा मोहल्ले के कुछ लोग मदद को आगे आए तो बुधवंत का साहस बढ़ा। उसने पिता की अर्थी को सजाया और कंधा देने वालों के अभाव में ठेले पर रखकर मुक्तिपथ पर ले गयी और पथराई आंखों से मुखाग्नि देकर अपना कर्तव्य निभाया। बुधवार को इस पूरे दृश्य को जिसने भी देखा उनकी आंखे भर आयीं। विकलांग बुधवंत कौर के इस साहस की लोगों ने भूरी-भूरी प्रशंसा की है।

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