नई दिल्ली, १७ सितम्बर- घाटी में २०१३ तक भारतीय रेल की आवाज गूंजती। घाटी में जिंदगी आसान हो जाती। लेकिन २००३ में शुरू हुआ ये प्रोजेक्ट अब रुक गया है। पांच साल बाद इस प्रोजेक्ट में रेल मंत्रालय को खामियां ही खामियां नजर आने लगी हैं। अब पुरानी योजना के अनुसार घाटी में रेलवे ट्रैक बिछाना रेलवे को असंभव लगने लगा है। इसलिए रेल मंत्रालय ने एक फरमान जारी कर १३८ किलोमीटर के रेलवे ट्रैक को बेकार बता दिया है। काम रोक दिया गया है।
ऐसे एक दर्जन से च्यादा टनल तैयार किए जा चुके हैं, जिनके भीतर से ट्रेन को गुजरना है। लेकिन रेलवे ने अब रास्ता बदल दिया है। ऐसे में इन सभी टनल की जरूरत खत्म हो गई है। इस काम पर अब तक एक हजार करोड़ रुपए फूंके जा चुके हैं। यही नहीं, इस काम को करा रहे कोंकण रेलवे का टेंडर अगर रद्द होता है तो उसे भी १ हजार करोड़ रुपए का हर्जाना देना होगा। ऊपर से पांच साल भी बर्बाद हुए। १३८ किलोमीटर का ये रेलवे ट्रैक जम्मू के कटरा से कश्मीर के काजीकूंज तक जाता है। इसके रास्ते में बहुत से गांव औऱ कस्बे पड़ते हैं। रेलवे का कहना है कि घाटी के पहाड़ी रास्तों में रेल की पटरी को ठीक से जोड़ा नहीं जा सकता। जिन रास्तों से रेल गुजरनी है वो सुरक्षा की दृष्ठि से ठीक नहीं हैं।
पटरियों का घुमावदार होना खतरनाक हो सकता है। इन जगहों पर भूकंप और भूस्खलन दोनों का खतरा है। ये कमियां रेलवे को पांच साल बाद याद आई हैं जबकि इस रेलमार्ग पर १६ बड़े टनल, चार ब्रिज के साथ ही दुनिया का सबसे ऊंचा चिनाब नदी के पुल और एशिया के सबसे ऊंचे अंजी पुल का काम लगभग पूरा कर लिया गया है।
रेल मंत्रालय के मुख्य प्रशासनिक अधिकारी (निर्माण) आर।के. गुप्ता ने कहते हैं कि पुराने अधिकारियों से कुछ चूक हुई है, जितनी गंभीरता से इस मामले को देखा जाना चाहिए था, वो नहीं किया गया। रेलवे के लापरवाह अफसरों को काम शुरू करने की इतनी जल्दबाजी थी कि उन्होंने आधी अधूरी परियोजना पर ही काम चालू कर दिया। अब पांच साल बाद इस काम को रोकना पड़ा है। इसके साथ ही उम्मीदों की ट्रेन जम्मू से कश्मीर पर भी ब्रेक लग गया है। कोंकण रेलवे ने पांच साल पहले ही साफ किया था कि इस प्रोजेक्ट में बदलाव किया जाना चाहिए तब लापरवाह रेल अफसरों ने खारिज कर दिया था।
अब रेलवे को लगभग दो हजार करोड़ रुपये की चपत लग गई तो तकनीकी खामी बताकर मामले को रफा-दफा करने की साजिश की जा रही है। २००३ में कोंकण रेलवे ने घुमावदार रास्तों की बजाए एक लगभग सीधे ट्रैक पर काम करने का सुझाव दिया था।
कोंकण रेलवे ने इसके फायदे भी गिनाए थे। कटरा से कांजीकूंड की जो दूरी १३८ किलोमीटर है, वो महज ७२ किलोमीटर रह जाएगी। नौ रेलवे स्टेशन के बजाए पांच से ही काम चल जाएगा। जमीन का भी काफी कम अधिग्रहण करना होगा। खास बात इस पर चलने वाली ट्रेन की रफ्तार ३० किलोमीटर प्रति घंटा से बढ़कर दोगुनी यानी ६० किलोमीटर प्रति घंटा हो जाएगी। कोंकण रेलवे ने ये भी कहा कि अगर उनके प्रस्ताव को मंजूर किया जाता है तो ११ साल के बजाए आठ साल में ही काम पूरा कर दिया जाएगा और १२,५८२ करोड़ के बजाए इस काम को ८१७७ करोड़ में ही कर दिया जाएगा।
तब रेल मंत्रालय ने इस प्रस्ताव को ये कह कर खारिज कर दिया कि रेल मार्ग लंबा होने से कई गांवों को इसका फायदा होगा, क्योंकि उन तक ट्रेन पहुंच जाएगी। अब रेलवे को लोगों की फिक्र खत्म हो गई है। क्योंकि पहले ये रेलमार्ग ५० गांव से होकर गुजर रहा था, जो अब महज आठ गांव से ही गुजरेगा। इस प्रोजेक्ट में २ हजार करोड़ रुपए तो डूबेंगे ही। अब इसे पूरा होने में दस साल और लग जाएंगे। ऊपर से इस पर राजनीति और शुरू हो गई है। सांसद और सदस्य, रेलवे संसदीय समिति लाल सिंह कहते हैं कि रेलमार्ग को बदलने नहीं देंगे। जब ट्रेन गांव को नहीं जोड़ेगी तो रेल से फायदा ही क्या है।
1 comment:
samajh mein nahi aata ki bharat china se prerna kyon nahi leta. wahan itne bare-bare project complete ho rahe hai ki hum dekhte ja rahe hai aur woh age badhte ja rahe hai.
desh mein corruption itana badh gaya hai ki kisi bhi project ko shuru karne ki zaldbazi isliye hoti hai ki DALALI jaldi se jaldi jeb mein aye. netaon aur afsaro ko is baat ki jara bhi ficra nahi hoti hai. unhe to bas apni DALALI se matlab hai.
durgesh sharma
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