Jul 15, 2008

यूपीए कर रही है लोकसभा भंग कराने पर भी विचार

नई दिल्ली, १५ जुलाई- जैसे-जैसे विश्वासमत की तारीख नजदीक आती जा रही है, सरकार की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं। छोटे दलों की सौदेबाजी और झामुमो की बेरूखी से सरकार की राह आसान नहीं लग रही है। ऐसे में यूपीए के रणनीतिकार सदन का सामना किए बिना लोकसभा भंग करने के विकल्प पर भी गंभीरतापूर्वक विचार कर रहे हैं।
सूत्रों के अनुसार जद (एस), टीआरएस और रालोद जैसे छोटे दलों की समर्थन के बदले सौदेबाजी से यूपीए के रणनीतिकार आशंकित हैं। टीआरएस व जद (एस) नेताओं के वामपंथी नेताओं के संपर्क में होने, भाजपा और रालोद के बीच चल रही बातचीत और नेशनल कांफ्रेंस की डांवाडोल स्थिति के बाद यूपीए की नैया पार लगती नहीं दिख रही है।
जद (एस) के तीन, टीआरएस के तीन, रालोद के तीन, झामुमो के पांच, नेशनल कांफ्रेंस के दो तथा तीन निर्दलीयों को मिलाकर आंकड़ा बैठता है १९ का। ये १९ सांसद जिसके पक्ष में चले जाएंगे, उसकी जीत हो जाएगी। फिलहाल इन १९ का रूख अभी साफ नहीं है। यूपीए के रणनीतिकार इनको लेकर पूरी तरह आश्वस्त नहीं हैं।
इतना ही नहीं सपा में भी करार के विरोध को लेकर सदस्यों की संख्या पर यूपीए में भ्रम बना हुआ है। सरकार के विदेश राज्यमंत्री और आईयूएमएल के नेता ई. अहमद करार के कुछ बिंदुओं पर ऐतराज कर चुके हैं। भजनलाल के बेटे कुलदीप बिश्नोई समर्थन पर ना-नुकुर कर रहे हैं। ये बातें भी रणनीतिकारों के लिए चिंता का सबब बनी हुई हैं। दरअसल इस पूरे प्रकरण में वामपंथी दल मुख्य विपक्ष की भूमिका निभा रहे हैं। सरकार को गिराने को लेकर वामपंथी दलों की आतुरता भाजपा से कहीं ज्यादा है। ऐसे में भाजपा ने भी यदि खुलकर विरोध कर दिया तो विश्वासमत का आंकड़ा छूना सरकार के लिए मुश्किल होगा। इन्हीं सब पर विचार के लिए कांग्रेस नेताओं की आज कई दौर की बैठकें हुईं। इसमें गंभीरता से विचार किया गया कि ज्यादा सौदेबाजी के बजाय लोकसभा को भंग करने के विकल्प भी खुले रखे जाएं। संविधान के जानकारों के अनुसार यूपीए सरकार को इस प्रकार का प्रस्ताव लाने का अधिकार है।

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