Sep 5, 2008

भारतीय हितों के अनुरूप समझौता नहीं तो करार नहीं: काकोडकर

विएना, ४ सितंबर- परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष अनिल काकोड़कर के इस बयान से परमाणु समझौते पर उठे विवाद में और उबाल आ गया है कि यदि समझौता भारतीय हितों के अनुरूप नहीं हुआ तो इसे रद्द कर दिया जाएगा।
'एनडीटीवी' को दिए साक्षात्कार में काकोड़कर ने कहा समझौते को लेकर ज्यादा सशंकित होने की जरूरत नहीं है। यदि जरा सा भी यह लगा कि समझौता हमारे हितों के विपरीत है तो हम इससे बाहर निकल जाएँगे।
काकोड़कर यह बयान अमेरिका के राष्ट्रपति जार्जडब्ल्यु बुश की ओर से परमाणु समझौते के बारे में अमेरिकी कांग्रेस को जनवरी में लिखे गुप्त पत्र के लीक होने के बाद दे रहे थे।
हालाँकि काकोड़कर ने कहा इस पत्र के बारे में उन्हें पहले ही पता था। उन्होंने कहा दरअसल यह पत्र कुछ और नहीं, बल्कि एक प्रश्नावली का जवाबभर था। इसमें ऐसा अलग कुछ नहीं है, जो परमाणु समझौते के बारे में हम अपने देशवासियों से अब तक कहते आए हैं, लेकिन हैरानी इस बात पर है कि एक ऐसा पत्र जिसे पूरी तरह गुप्त रखा जाना था, लीक कैसे कर दिया गया।
उन्होंने कहा यह पत्र १२३ समझौते से अलग कुछ नहीं है। इसमें भी वही बातें शामिल हैं, जो समझौते में कही गई हैं। बुश के इस गोपनीय पत्र को लेकर भारत में राजनीतिक तूफान आ गया है तथा परमाणु समझौते पर भी सवालिया निशान लग गया है।
परमाणु आपूर्तिकर्ता देशों के समूह एनएसजी की गुरुवार को शुरू हुई दो दिवसीय बैठक के ठीक एक दिन पहले बुधवार को 'वॉशिंगटन पोस्ट' ने अपने विशेष संस्करण में बुश के पत्र का ब्योरा उजागर किया था। इसमें बुश ने साफ कहा है परमाणु परीक्षण करने की हालत में समझौता तुरंत रद्द हो जाएगा।
पत्र में अमेरिकी सांसदों को बताया गया है कि भारत को परमाणु ईंधन का सुरक्षित भंडार बनाने की अनुमति बिना शर्त नहीं दी गई है तथा समझौते के तहत अमेरिका भारत को अत्याधुनिक परमाणु तकनीकी हस्तांतरित नहीं करेगा।
बुश के पत्र के इस रहस्योद्घाटन से भारत में राजनीतिक तूफान खड़ा हो गया है तथा परमाणु समझौते का विरोध कर रहे वामपंथी दलों और भाजपा ने सरकार पर देश को धोखे में रखने और झूठ बोलने का आरोप लगाते हुए समझौते को खारिज करने की माँग की है।
इस बीच विदेशमंत्री प्रणब मुखर्जी ने स्पष्ट किया है कि बुश का पत्र अमेरिका का आंतरिक मामला है। सरकार केवल भारत अमेरिका के बीच हुए द्विपक्षीय १२३ समझौते से बँधी है। दूसरे देश की सरकार के विभिन्न अंगों के बीच हुए पत्राचार पर हम प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं करते।

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