मुंबई, ६ अगस्त- पर्यावरण के अनुकूल और ईंधन के सस्ते विकल्प की तकनीक के विकास में जुटी अंतरराष्ट्रीय ऑटोमोबाइल कंपनियों की सूची में अब टाटा मोटर्स का नाम भी शामिल हो गया है। परियोजना की जानकारी रखने वाले सूत्रों ने ईटी को बताया है कि टाटा मोटर्स इलेक्ट्रिक कार विकसित करने के लिए नार्वे की कंपनी थिंक के साथ बातचीत कर रही है। टाटा मोटर्स के चेयरमैन रतन टाटा ने हाल ही में कहा था कि उनकी कंपनी इलेक्ट्रिक कार विकसित कर रही है, जिसे भारत में इस वित्त वर्ष में उतारा जाएगा। एक साल बाद इस कार को दुनिया भर के बाजारों में लॉन्च किया जाएगा। उन्होंने इस परियोजना में कंपनी के अंतरराष्ट्रीय भागीदार और ई-कार के संभावित दाम के बारे में जानकारी नहीं दी थी।
इस बारे में टाटा मोटर्स के प्रवक्ता ने भी कुछ नहीं बताया। थिंक अमेरिकी और यूरोपीय ऑटो कंपनियों के लिए कार बना रही है। बैटरी से चलने वाली थिंक की कारों की रेंज १०० मील या १८० किलोमीटर है। इलेक्ट्रिक कारों को विशेष एम्पियर के इलेक्ट्रिक आउटलेट के जरिए रीचार्ज किया जाता है। इन कारों के ज्यादा लोकप्रिय न होने की वजह रीचार्ज में लगने वाला समय और सिंगल रीचार्ज से सीमित दूरी की यात्रा है। इसके अलावा इनकी कीमत भी एक मुद्दा है।
थिंक की ई-कार की नार्वे में कीमत लगभग ३४,००० डॉलर है। इस सेगमेंट में अभी तक भारत में केवल रेवा इलेक्ट्रिक कार कंपनी (आरईसीसी) ही मौजूद है। रेवा की टू-सीटर कार को चलाने की लागत भले ही ४० पैसे प्रति किलोमीटर है, लेकिन इसका दाम ३-४.२ लाख रुपए के बीच है। ७० किलोमीटर की अधिकतम रफ्तार पर रेवा सिंगल चार्ज में ८० किलोमीटर तक जा सकती है। बेंगलुरु की यह कंपनी अभी तक केवल ३,००० कारें ही बेच सकी है। इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री को प्रोत्साहन देने के लिए अभी इन वाहनों पर कोई उत्पाद शुल्क नहीं लगता।
आरईसीसी के प्रेसिडेंट (सेल्स एंड मार्केटिंग) आर. चंद्रमौली का कहना है, 'इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए बाजार में काफी संभावनाएं हैं। युवा पीढ़ी विशेष रूप से ग्लोबल वार्मिन्ग को लेकर काफी जागरूक हो रही है।' इलेक्ट्रिक कार की कीमत में एक-तिहाई हिस्सा बैटरी का होता है। मोटर और बैटरी इस कार का अहम हिस्सा होते हैं और अक्सर इनकी तकनीक विदेश से मंगाई गई होती है। जनरल मोटर्स, टोयोटा, होंडा और निसान-रेनॉ जैसी बड़ी कंपनियां ईंधन की अधिक खपत करने वाले हल्के ट्रकों और स्पोर्ट्स यूटिलिटी वीकल (एसयूवी) के उत्पादन में कटौती कर इलेक्ट्रिक कारों को विकसित करने की रफ्तार में तेजी ला रही हैं। इसकी बड़ी वजहों में ग्लोबल वार्मिन्ग, ईंधन के दाम बढ़ना और उत्सर्जन के कड़े मानक हैं।
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