सीतामढ़ी, २७ अगस्त- 'कोई मेरे लाल की जिंदगी बचा ले।' ममता का आंचल फैलाये एक मां कुछ ऐसे ही अपने पुत्र की जिंदगी की भीख मांगती फिर रही है। वहीं गरीब पिता अपने पुत्र की ईलाज के लिए सहयोग व जिंदगी बचाने के लिए 'खून' मांगता दर-दर खाक छानता फिर रहा है। बावजूद इसके न कोई मसीहा मिल रहा है और नहीं कोई रहनुमा ही।
यहां तक स्वयंसेवी संस्था व सरकारी सहायता के लिए जटिल कागजी प्रक्रिया से गरीब पिता के कदम लड़खड़ाने लगी है वहीं मासूम की जिंदगी खतरे में पड़ती दिख रही है। डुमरा रोड स्थित सीतांजलि सर्विसिंग सेंटर नामक दुकान के छोटे कमरे में फर्स पर लेटा १४ वर्षीय गौरव जिंदगी की लड़ाई लड़ रहा है। जहां बैठी उसकी मां कभी पुत्र को देखती है तो कभी पति पारस प्रसाद को। उसके पुत्र को बोन मैरो प्लास्टिक एनीमिया नामक गंभीर बीमारी है। इसके इलाज पर १५ से २० लाख रुपये खर्च आता है।
लखनऊ में इस बीमारी की पुष्टि होने के बाद पैसों के अभाव में पुत्र को लेकर श्री प्रसाद वापस आ गये। जहां पुत्र की जिंदगी व मौत के बीच जद्दोजहद जारी है। हर सप्ताह गौरव को एक बैग ओ पोजेटिव खून चढ़ानी पड़ती है। खुले बाजार में इसकी कीमत ८५० रुपये चुकानी पड़ती है। यहां ब्लड बैंक नाकारा है। लिहाजा खून मिलना संभव नहीं है। स्वयंसेरी संगठन भी हाथ खड़े कर चुके हैं।
लाचार मां-बाप के पास न तो पैसे हैं और न खून मिल रहा है। हालांकि डीएम विजय कुमार ने ईलाज की व्यवस्था की बात कही है। लेकिन इसके लाभ के लिए कागजी प्रक्रिया की जटिलता तत्काल समस्या का समाधान नहीं करती दिख रही है। ऐसे में इंतजार है एक फरिश्ते की जो मासूम गौरव की जिंदगी बचा एक मां के आंचल को गुलजार रहने दे।
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