दुनिया भर में तेल के भाव में आग लगने का मुख्य कारण है "सट्टेबाजी" तेल निर्यातक देशों के संगठन "ओपेक" का कहना है कि बाजार में तेल की आपूर्ति पर्याप्त है किंतु सट्टेबाजी के कारण दम बढ़ रहे है दरसल अब शेयर बाज़ार की तरह कमोडीटी एक्स्चेंज में कच्चे तेल का वायदा कारोबार होता है इन कमोडीटी बाज़ारों में न्यूयार्क का नाईमैक्स और लंदन का कमोडीटी बाज़ार मुख्य रूप से तेल का भाव तय कर रहा है . इससे आम निवेशक या संस्थागत निवेशक किसी अन्य सामान की तरह अगले दो तीन माह के लिए तेल की बोली लगाते है . मान लीजिये किसी निवेशक नें अगस्त २००८ में एक बैरल तेल के लिए १४० डालर की बोली लगादी तो इससे कच्चे तेल के बाज़ार का रूख इसी मूल्य के स्तर के आस-पास बनने लगता है और आपूर्ती चाहे पर्याप्त भी हो तो भी किंमतें बढ़ जाती है .
तेल निर्यातक देशों के संगठन "ओपेक" का आरोप है कि ऐसे निवेशकों द्वारा भी बोली लगाई गई जो अपनी ही लगाई गई (किमतों) बोली पर डिलीवरी नहीं लेते है बल्कि इससे ऊँचे भाव के ताक में रहते है और अपना कान्ट्रेक्ट बेच देते है इस तरह वास्तविक खरीद-विक्री के बिना ही किमतों में भारी उतार-चढाव होता रहता है . आकलन यह भी है कि मुद्रा बाज़ार में डालर का भाव गिरने से निवेशकों नें तेल में पैसा लगाना शुरू किया है इससे तेल की किमतें और बढी है कुल मिलाकर मुनाफाखोरी के कारण तेल में आग लगी है .
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